विश्वास और अंधविश्वास
ये बहुत पुरानी बात है, तब स्कूल कॉलेज बहुत कम होते थे, मोबाइल फोन टेलीफोन का उपयोग बहुत कम होता था, मैं उन दिनों स्कूल में पढ़ रहा था, तब शायद किसी को इतनी जानकारी नही थी दुनियादारी की, हाँ इतना जरूर पता था कि कोई बाहरी ताक़त है जो दुनिया चला रही है, जिससे बारिस होती है, लू पड़ती है, सूर्य और चांद का आना होता है, दुनिया मे जो भी है जिसे हम जानते हैं या अनजान हैं उसे उस रहस्यमयी ताक़त ने बनाया है, जिसे हम ईश्वर कहते हैं।
राजू पिछले दो दिन से स्कूल नही आ रहा था, वो मेरा काफी अच्छा दोस्त था, हम दोनों पिछले दो साल से साथ थे, साथ साथ बैठते खाते और कभी किसी से लड़ाई झगड़ा हो जाये तो वो भी...
एक दिन नही आया था सोचा चलो ठीक है कोई काम होगा तो रुक गया होगा, फिर वो अगले दिन भी नही आया और आज भी उसका कुछ पता नही, दोस्त तो बहुत है स्कूल में पर उसके जितना कोई खास नही, पर परेशानी ये थी कि उसका गांव मेरे गांव के विपरीत दिशा में पड़ता था, जिससे मैं शाम को उसके घर जाना चाहूं तो अपने घर वापस जाने में रात हो जाएगी और मैं जा नही पाऊंगा।
काफी सोच विचार करते हुए मैं दोपहर में स्कूल से हेड मास्टर साहब से छुट्टी ली, हेड मास्टर साहब बहुत कड़क हैं वो आसानी से कोई बात नही मानते पर काफी मशक्कत के बाद आखिर उन्हें मानना पड़ा और मैं अपना झोला लेकर निकल चला अपने दोस्त के घर की ओर
जाते हुए मन मे अनेको प्रकार के विचार आ रहे थे, कही उसे कुछ हो तो नही गया? उसे कोई बहुत आवश्यक काम पड़ गया तो कौन सा काम! उसके घर में कोई दुर्घटना तो नही हो गयी! हे महाकाल मैं ये क्या विचार कर रहा हूँ कही उनका कोई अहित न हो...
उसका घर स्कूल से 7 किलोमीटर दूर है, 1.5 घंटे तक चलने चलने के बाद मैं उसके घर के करीब पहुँचा, इससे पहले भी मैं दो-तीन बार उसके साथ उसके घर आया था। सर्दी के मौसम में भी जोर की प्यास लगने लगी थी, वही पास के कुएं से कुछ औरते पानी भर रही थी, मैं उनके पास गया..
" ताई जी, प्यास लगी है थोड़ा पानी मिल सकता है" - मैं मुह ताकते हुए बोला।
"हाँ बेटा! जरूर" कहते हुए उन्होंने ने कुए से पानी निकाला और पीकर एक नई स्फूर्ति का एहसास हुआ।
"वैसे बेटा! कहा जा रहे हो, इस गांव के तो नही लगते.." जैसे ही मैं उनका धन्यवाद अदा कर वापस जाने को मुड़ा उन्होंने सवाल दाग दिया।
"जी मैं राजू के घर जा रहा हूँ, वो मेरा मित्र है स्कूल का।" - मैने उन्हें बताया।
"ओह्ह..!" उन्होंने लंबी सांस ली, मुझे लगा मेरी जान छूटी और मैं राजू की घर की ओर बढ़ा।
"वैसे ये राजू कौन है बेटा!" - ताई जी ने पूछा
अब तो लग रहा जैसे मैं यहां पानी पीने आकर गलती कर दिया, व्यर्थ में समय बर्बाद हो रहा था, मन ही मन स्वयं पर क्रोध भी कर रहा था।
"जी वो यही आपके पड़ोस में रहता है, ज्ञानचंद जी का बेटा।" - मैंने सामान्य होकर जवाब दिया।
"ओह्ह! तो ये चिन्टूआ की बात कर रहा है उसकी तबियत तो बहुत खराब है, सुना है किसी की नज़र लग गयी" - आस पास की सारी औरते आपस मे बतियाने लगी मैंने उनपर ध्यान दिए बिना अपने कदम राजू के घर की ओर बढ़ा दिये, 10 मिनट बाद मैं उसके घर था, पर यहाँ सब बदला बदला लग रहा था, घर पे एक बड़ी बड़ी दाढ़ी मुछ वाले बाबा आये थे, राजू नीचे चटाई पर लेटा हुआ था, वस्त्र के नाम पर मात्र धोती पहने हुए, मैं ये सब देखकर एकदम आश्चर्यचकित था, 3 दिन पहले जब वो मिला था तो एकदम ठीक था, फिर अचानक से इतनी बेकार हालत कैसे हो गयी, मैंने उसके पिताजी से कुछ पूछने की कोशिश की पर मेरे मुंह से बोल नही फूटे, न ही पहले की तरह किसी ने स्वागत अभावगत की तैयारी की, सब जैसे थे वैसे बैठे रहे, फिर अचानक से राजू के पिता जी को मेरा ध्यान आया और उन्होंने राजू की माँ को मेरे लिए पानी लाने को कहा।
मैं बाबा को देखकर हैरान था, ज्ञानचंद जी काफी पढ़े लिखे और समझदार इंसान थे, उनकी गांव में बहुत चलती थी, वो भी इन सब मे यकीन करते है मुझे आज से पहले पता न था, बाबा ने पता नही क्या मंत्र तंत्र पढ़ा, फिर उठकर बोले, "देखो इसपर बहुत ही भयानक शैतान का साया है, इसको भगाने के लिए हमें हवन करना होगा, इसके लिए आवश्यक सामग्रियो की लिस्ट बना लो, वो बाज़ार से ले आना।"
फिर बाबा एक लंबी चौड़ी लिस्ट तैयार करने लगे, ज्ञानचंद जी की भौंहे सिकुड़कर चौड़ी होती जा रही थी, फिर कुछ आवश्यक निर्देश देकर बाबा जी वहां से रवाना हुए।
मेरे में बहुत कौतूहल था, कई सवाल थे पर चाहकर भी पूछ नही पा रहा था।
"चाचा जी इसे क्या हुआ था, स्कूल में तो ठीक ही था!" आखिर बहुत कोशिश करने के बाद मैंने ये सवाल पूछा।
"पता नही बेटे, हमे तो एक राहगीर ने खबर दी, उसने कहा कि किसी गांव वाले ने उसे बताया है कि मेरा बेटा रास्ते मे कही बेहोश है, तब से हम बहुत कोशिश कर रहे हैं इसकी हालत सुधार नही हो रहा।" ज्ञानचंद जी रूवासे स्वर में बोले।
"आपने शहर के किसी डॉक्टर को दिखाया?" मैने झट से ये सवाल पूछा।
"न.. नही बेटा, बाबा जी का आदेश है इसे घर से बाहर न ले जाएं, वैसे भी इसपर शैतानी साया है डॉक्टर बीमार का इलाज करते हैं शैतान का नही।" - ज्ञानचंद जी बोले।
"आपको कैसे पता कि इसपर शैतान का साया है? आपने देखा है?" - मैंने उनसे पूछा।
वे जवाब देने के बजाए मुझे घूर घूर कर देखने लगे। मैंने शांत रहने ही ठीक समझा, अब छोटा बच्चा क्या करे, जिद हाँ बच्चे जिद ही तो करते हैं।
"अच्छा ठीक है राजू घर से बाहर नही जा सकता, पर डॉक्टर तो घर आ सकता है, आप जाइये जीप लेकर, और जल्दी से लेकर आइये।" - मैंने अपनी बात को बदलकर पुनः प्रस्तुत किया।
"हाँजी बिटवा सही कह रहा है, एक बार दिखा ही लीजिए, वैसे भी समान लेने के लिए शहर जाएंगे ही।" - श्रीमती ज्ञानचंद जी ने मेरी बात पर अपनी सहमति जाहिर की, जिससे ज्ञानचंद जी को न चाहते हुए भी शहर जाना पड़ा।
थोड़ी देर बाद वो घर वापस आये, उनके साथ डॉक्टर भी थे, डॉक्टर ने राजू की नब्ज जाँची फिर थोड़ी देर तक कलाई पकड़कर मौन रहे, इधर हमारे हृदय की गति बढ़ चुकी थी।
"इसे कुछ नही हुआ है, बस प्रदूषण के कारण उत्पन्न कीटाणुओं की वजह से इसके शरीर के अंगों ने थोड़ी देर के लिये कार्य करना बंद कर दिया है, इसको बड़े हॉस्पिटल ले जाना होगा, अगर ज्यादा देर हो गयी तो ये फिर कभी खड़ा नही हो पायेगा।" - डॉक्टर साहब बोले
किसी तरह बड़ी मुश्किल से समझाने मनाने के बाद ज्ञानचंद जी राजू को हॉस्पिटल ले जाने को तैयार हुए
फिर अचानक से तैयारी होने लगी, राजू को जीप में लिटाकर हॉस्पिटल ले जाने लगे, हॉस्पिटल जाने का रास्ता मेरे गांव से होकर जाता था, इसलिए मुझे उतार दिया गया, मैं राजू के साथ जाना चाहता था परन्तु मेरा घर जाना भी आवश्यक था अब रात होने वाली थी।
दो दिन बाद मैं अपने पिताजी के साथ हॉस्पिटल गया, वहां ज्ञानचंद जी बैठे हुए थे, उनके बगल में एक दो रिश्तेदार भी आये हुए थे जो शायद उनके साथ ही रुके हुए थे।
मैंने उन्हें प्रणाम किया और राजू के बारे में पूछने लगा
"अब राजू की तबियत कैसी है चाचा जी?"
"अब उसकी तबियत में काफी सुधार है बेटा, डॉक्टर ने कहा है वह अगले दो दिनों में घर जाने लायक हो जाएगा।" - ज्ञानचंद जी ने जवाब दिया
फिर मेरे पिताजी और बाकी सबने औपचारिक बातें करने लगे, उसके थोड़ी देर बाद हम राजू से मिलने उसके वार्ड में गए, अब वो काफी अच्छे हालत में था।
"धन्यवाद बेटा! तुमने हमे डॉक्टर को दिखाने का राय देकर एहसान किया, वरना बाबा के चक्कर मे पता नही क्या होता।" - ज्ञानचंद जी मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोले।
"इसमें धन्यवाद की कोई बात नही चाचा जी, मुझे खुशी है मेरा दोस्त ठीक हो रहा है, थोड़े दिन बाद हम दोनों फिर साथ स्कूल में होंगे" - मैं बोला जिसपर राजू भी मुस्करा दिया।
"वैसे आपको इन सबपर विश्वास है?" - मेरे पिता जी ने ज्ञानचंद जी से पूछा।
"ह....अं...." ज्ञानचंद जी हकला गए
"देखिए विश्वास होना अच्छी बात है, परन्तु अंधविश्वास कभी अच्छा नही होता, सतर्क रहिये। ईश्वर में आस्था रखिये, वही सबकुछ करता है, हम तो माध्यम मात्र हैं, परन्तु अंधविश्वास से बचकर रहिये।" डॉक्टर साहब बोले, जो हमारी बाते सुन रहे थे।
"जी.... जी डॉक्टर साहब" ज्ञानचंद जी ने कहा।
कुछ दिनों बाद राजू बिल्कुल ठीक हो गया, अब हम रोज स्कूल में साथ खेलते है, कूदते है, और खूब मज़े करते हैं। लोगो को अंधविश्वास से दूर रहने को कहते हैं, और प्रदूषण रैलियों में भाग भी लेते हैं, जिससे लोगो को बीमारियों का असली कारण और उसका निवारण पता चले।
"ईश्वर में विश्वास करो, अंधविश्वास ईश्वर स्वीकार नही करता।"
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राधिका माधव
29-Jul-2021 10:03 AM
बेहतरीन कहानी....
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मनोज कुमार "MJ"
05-Aug-2021 10:34 AM
Thank you
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Aliya khan
29-Jul-2021 07:53 AM
Gd
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मनोज कुमार "MJ"
05-Aug-2021 10:33 AM
Thank you
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Niraj Pandey
24-Jul-2021 04:31 PM
वाह बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने👌
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मनोज कुमार "MJ"
24-Jul-2021 04:56 PM
बहुत shukriya
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